Sunday, June 6, 2010

मर जाता हूँ

इतनी प्यास क्यूँ मेरे मन में
बादल का एक टुकड़ा ना मेरे आँगन में
मेरा जहाँ भी अब तो आबाद करो
पूरा शहर भीगा मेरे घर में भी बरसात करो

दो वापस मुझे मेरा जहाँ
मेरी भी तो सुनो तुम हो कहाँ
मेरे दर्द का इन्साफ कर दो
और मेरे गुनाहों को माफ़ कर दो

मेरी मंजील का ये सुना डगर
और मैं भटका हुआ इसपर
मेरी दुनिया का सूरज है खो गया
ना मंजिल का है ठीकाना, न राह आये नज़र

बेमतलब सा लगता है ऐसे जीने में
जाने कौन सा डर है अबतक सीने में
अब और क्या है जो जायेगा
जो यूँ चला गया वो वापस ना आएगा

किसी की आहात होती है जब
तुम ना हो ये सोचने से मुकर जाता हूँ
इसीलिए इस पल जिंदा होता हूँ
तुम्हे ना पाकर अगले ही पल मर जाता हूँ

5 comments:

Anonymous said...

kiiiiiiiii likhaaaaa haiiiii

Anonymous said...

very touching ...lot of emotions wrapped in words ..wonderfully written ! :)

abhishek kunal said...

hiii!! thank you people..you encourage me!!

Anonymous said...

Very nice abhishek i ll copy ur poems for someone someday[:D

abhishek kunal said...

@aakansha ...i wish , you never get such day!! never get to mourn..be happy!!!